Rajasthan के मारवाड़ क्षेत्र में ओरण भूमि का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक तकरार का केंद्र बन गया है। निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी और ग्रामीणों ने ओरण भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करने की मांग उठाई, जिससे विधानसभा में इस पर तीखी बहस छिड़ गई। इस मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुटी हैं।
विधानसभा में गरमाया ओरण भूमि विवाद
विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन विधायक रविंद्र सिंह भाटी “ओरण बचाओ” का नारा लिखी टी-शर्ट पहनकर सदन पहुंचे, जिससे यह मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया। वहीं, बुधवार को भाजपा ने कांग्रेस और उनके समर्थित निर्दलीय विधायकों पर ओरण भूमि को खुर्द-बुर्द करने के गंभीर आरोप लगाए। भाजपा विधायक केसाराम चौधरी ने प्रश्नकाल के दौरान कहा कि कांग्रेस समर्थित पूर्व निर्दलीय विधायकों ने करीब 240 बीघा ओरण भूमि को गलत तरीके से हड़प लिया।
भाजपा ने कांग्रेस को घेरा, कांग्रेस बैकफुट पर
मारवाड़ क्षेत्र के लिए यह मुद्दा नया नहीं है, लेकिन जनता की भावनाओं से जुड़े होने के कारण यह लगातार राजनीतिक बहस का विषय बना हुआ है। निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने इस विषय पर आंदोलन छेड़ा था, जिससे यह मुद्दा भाजपा सरकार के लिए चुनौती बन गया था। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने के लिए विधानसभा में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया।
भाजपा विधायक केसाराम चौधरी के सवाल के जवाब में राजस्व मंत्री ने सदन में उन लोगों के नाम उजागर किए, जिन्होंने ओरण भूमि को खातेदारी में दर्ज करवाया था। इन नामों में कांग्रेस समर्थित पूर्व विधायक खुशवीर सिंह जोझावर और उनकी पत्नी का नाम भी शामिल था। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस पर तीखे आरोप लगाते हुए कहा कि “कांग्रेस ने ही ओरण भूमि को हड़प लिया है।”
जैसलमेर में अदाणी समूह के खिलाफ आंदोलन
ओरण भूमि विवाद सिर्फ मारवाड़ तक सीमित नहीं है। जैसलमेर के बईया गांव में अदाणी समूह की सोलर कंपनी को दी गई जमीन पर भी विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस और निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी इस मामले में आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक ओरण भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया जाता, तब तक वहां कोई भी निर्माण कार्य शुरू नहीं होना चाहिए। ग्रामीणों का भी यही मत है कि सरकार को पहले ओरण और गोचर भूमि को अलग करना चाहिए, फिर सोलर प्लांट की स्थापना करनी चाहिए।
ओरण क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
“ओरण” शब्द का अर्थ वन या संरक्षित भूमि से जुड़ा है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी जमीन, जहां खेती नहीं होती और न ही पेड़ों की कटाई की जाती है, उसे ओरण कहा जाता है। यह भूमि पशु-पक्षियों के लिए सुरक्षित चारागाह के रूप में कार्य करती है। इसे स्थानीय बोलियों में ओण, ओवण और ओरांस भी कहा जाता है। कई क्षेत्रों में इसे गोचर भूमि भी माना जाता है।
राजस्थान में समय-समय पर ओरण बचाओ आंदोलन होते रहे हैं। जैसलमेर में साल 2020-21 के दौरान 55 किलोमीटर लंबी ओरण भूमि को बचाने के लिए “ओरण परिक्रमा” आंदोलन भी शुरू किया गया था।
राजनीति और प्रशासन के लिए क्यों बना यह मुद्दा सिरदर्द?
ओरण भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण और निजी कंपनियों को इसके आवंटन ने प्रशासन को असमंजस में डाल दिया है। यह ऐसा मुद्दा है, जिसका प्रशासनिक समाधान आसान नहीं है, क्योंकि यह जनता की भावनाओं से सीधा जुड़ा हुआ है।
भाजपा ने इस मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई है, जबकि कांग्रेस भाजपा सरकार पर ओरण बचाने में नाकाम रहने का आरोप लगा रही है। ऐसे में इस विवाद का असर आने वाले चुनावों पर भी पड़ सकता है।
क्या होगा आगे?
अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए क्या कदम उठाती है। यदि ओरण भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है, तो इससे ग्रामीणों को राहत मिलेगी, लेकिन यदि यह मामला और उलझता है, तो यह आने वाले दिनों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।