Rajasthan Bypolls-राजस्थान में हो रहे सात सीटों के उपचुनावों में जातिगत समीकरणों की भूमिका अहम मानी जा रही है। हर सीट पर भिन्न-भिन्न जातिगत समीकरण हैं, जो कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों के लिए एक चुनौती बने हुए हैं। इस बार प्रदेश की सातों सीटों पर चुनावी समीकरण अलग-अलग हैं, और यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दल भी परिवारवाद और सहानुभूति जैसे दांव आजमा रहे हैं।
रामगढ़ (अलवर): कांग्रेस को मुस्लिम वोटों का सहारा
अलवर जिले की यह सीट सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाली मानी जाती है, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30% से अधिक है। कांग्रेस ने इस बार दिवंगत विधायक जुबैर खान के पुत्र आर्यन जुबैर को टिकट दिया है, जिससे पार्टी मुस्लिम वोटों की उम्मीद कर रही है। भाजपा की ओर से सुखवंत सिंह उम्मीदवार हैं, जिनकी छवि सौम्य मानी जाती है, जिससे भाजपा मुस्लिम ध्रुवीकरण को कम करने में कामयाब हो सकती है।
दौसा: सामान्य वर्ग और एससी-एसटी के बीच संतुलन
दौसा सीट पर भाजपा ने किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को उम्मीदवार बनाया है, जो अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। वहीं, कांग्रेस ने अनुसूचित जाति वर्ग से डीडी बैरवा को टिकट दिया है। इस सीट पर कुल वोटों में करीब 50% एससी-एसटी हैं, जबकि बाकी सामान्य, मुस्लिम और ओबीसी वोटर हैं। भाजपा को उम्मीद है कि सामान्य और ओबीसी वोट पारंपरिक रूप से उसके पक्ष में रहेंगे, जिससे मीणा और ओबीसी वोट मिलकर जीत का समीकरण बना सकते हैं।
देवली-उनियारा (टोंक): गुर्जर और मीणा वोटों का समीकरण
टोंक जिले की इस सीट पर कांग्रेस ने कस्तूरचंद मीणा को टिकट दिया है, जो मीणा और मुस्लिम वोटों को साधने का प्रयास कर रहे हैं। यह सीट सचिन पायलट के गढ़ के नजदीक है, जिससे कांग्रेस को गुर्जर वोटों की भी उम्मीद है। हालांकि, पूर्व छात्र नेता नरेश मीणा कांग्रेस के बागी बनकर चुनाव में उतरे हैं, जिससे कांग्रेस के मीणा वोट बंट सकते हैं। भाजपा ने राजेन्द्र गुर्जर को टिकट देकर गुर्जर वोटों में सेंध लगाई है, जिससे कांग्रेस के सामने चुनौती खड़ी हो गई है।
झुंझुनू: राजेन्द्र गुढ़ा बने चुनावी एक्स फैक्टर
शेखावटी क्षेत्र की इस सीट पर कांग्रेस के ओला परिवार का वर्चस्व रहा है। पार्टी ने अमित ओला को टिकट दिया है, जो जाट और मुस्लिम वोटों के सहारे जीत की उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा ने जाट समुदाय के ही राजेन्द्र भांभू को मैदान में उतारा है। इस सीट पर एससी और मुस्लिम वोटों का प्रभाव भी देखा जा सकता है। राजेन्द्र गुढ़ा के चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस के एससी और मुस्लिम वोटों में विभाजन हो सकता है, जिससे भाजपा को फायदा मिलने की संभावना है।
खींवसर (नागौर): त्रिकोणीय संघर्ष में जाट वोटों का बंटवारा
खींवसर सीट पर कांग्रेस, भाजपा और हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। तीनों पार्टियों के उम्मीदवार जाट समुदाय से हैं, जिससे जाट वोटों का बंटवारा तय है। आरएलपी के पास इस सीट पर मुस्लिम वोट बैंक रहा है, जबकि भाजपा को एससी और ओबीसी वोटों का सहारा है। आरएलपी के हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल और भाजपा के उम्मीदवार रेवतराम डांगा के बीच कड़ा मुकाबला देखा जा रहा है।
चौरासी (बांसवाड़ा): एसटी वोटों का निर्णायक प्रभाव
बांसवाड़ा की इस आदिवासी बहुल सीट पर 85% आबादी अनुसूचित जनजाति की है। यहां कांग्रेस, भाजपा और भारतीय आदिवासी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रही हैं। इस सीट पर एसटी वर्ग के भीतर की उपजातियों के बीच का समीकरण ही तय करेगा कि किस दल को जीत मिलेगी।
सलूंबर (उदयपुर): आदिवासी और सामान्य वर्ग का मिश्रण
सलूंबर सीट पर आदिवासी वोट बैंक के साथ सामान्य जातियों का भी प्रभाव है। भाजपा ने दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांतादेवी को टिकट दिया है, जिससे एसटी और सामान्य वर्ग के वोटों को साधने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस की ओर से रेशम मीणा और बीएपी के रमेशचंद मीणा भी मैदान में हैं, जिससे जातिगत समीकरण जटिल हो गए हैं।
निष्कर्ष
राजस्थान के उपचुनावों में जातिगत समीकरणों का मजबूत प्रभाव देखने को मिल रहा है। हर सीट पर क्षेत्रीय और जातिगत प्रभाव अलग-अलग दिशाओं में काम कर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने जातिगत समीकरणों को साधने के प्रयास किए हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों और बागी उम्मीदवारों ने इन समीकरणों में उलझन पैदा कर दी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि परंपरागत जातिगत समीकरणों से ही जीत तय होगी या जनता इस बार परंपरा को बदलते हुए नए फैसले लेगी।