Ajmer राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर विवाद तब गहराया, जब हिंदू सेना ने दावा किया कि यह स्थल पहले एक शिव मंदिर था। इस दावे को आधार बनाते हुए सितंबर 2024 में एक याचिका दायर की गई।
याचिका का आधार हरबिलास शारदा की 1911 की पुस्तक
“Ajmer: Historical and Descriptive”
है, जिसमें कहा गया है कि दरगाह के वर्तमान स्थल पर पहले एक शिव मंदिर मौजूद था।
हिंदू पक्ष के तीन मुख्य दावे
दरगाह के निर्माण में मंदिर के अवशेषों का उपयोग:
याचिका में कहा गया कि मंदिर तोड़कर उसकी संरचनाओं से दरगाह का निर्माण किया गया।
धार्मिक अनुष्ठानों का इतिहास:
वकीलों ने बताया कि दरगाह स्थल पर शिव मंदिर के रूप में नियमित पूजा-अर्चना होती थी।
गुंबद और तहखाने में संरचनाएं:
हिंदू पक्ष ने दावा किया कि दरगाह के गुंबद में मंदिर के अवशेष मौजूद हैं और तहखाने में “गर्भगृह” स्थित है।
खादिमों और सज्जादा नशीन का विरोध
सज्जादा नशीन सैयद जैनुल आबिदीन अली खान:
उन्होंने इन दावों को “प्रचार” और “निजी स्वार्थ” का मामला बताते हुए खारिज किया। उन्होंने कहा कि यह विवाद देश के सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने का प्रयास है।
ऑल इंडिया सूफी सज्जादा नशीन काउंसिल:
इसके अध्यक्ष सैयद नासिरुद्दीन चिश्ती ने धार्मिक स्थलों पर बढ़ते दावों को समाज के लिए हानिकारक बताया।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का प्रभाव
यह कानून 15 अगस्त 1947 की स्थिति को यथावत रखने का निर्देश देता है, और इसके तहत धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बदलने पर प्रतिबंध है। हालांकि, हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में कानून लागू नहीं होता।
आगे की प्रक्रिया
मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को होगी। अदालत से पहले सबूत और दावे पेश करने के लिए याचिका को हिंदी में अनूदित करने की मांग की गई है।
निष्कर्ष
अजमेर दरगाह विवाद एक संवेदनशील मुद्दा है, जो ऐतिहासिक तथ्यों और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन की मांग करता है। सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखना इस विवाद का समाधान खोजने में महत्वपूर्ण है।