जालोर जिले, जिसे विश्व की सबसे बड़ी ग्रेनाइट मंडी माना जाता है, ने पिछले एक दशक में ग्रेनाइट की कटाई से उत्पन्न होने वाले पाउडर (स्लरी) की समस्या का समाधान खोज लिया है। पहले, यह स्लरी प्रदूषण का कारण बनती थी, जिससे हवा, मिट्टी और पानी में बुरा असर पड़ता था। अब, गुजरात के मोरबी शहर में ग्रेनाइट स्लरी का उपयोग करके सनमाइका टाइल्स का निर्माण किया जा रहा है, जिससे जालोर के ग्रेनाइट उद्योग को सालाना 2 करोड़ रुपये की आय हो रही है।
जालोर ग्रेनाइट एसोसिएशन के सचिव सुरेश चौधरी ने बताया कि पहले जालोर में 1200 यूनिटें थीं, लेकिन प्रदूषण के कारण कई फैक्ट्रियों को काम कम करना पड़ा। उन्होंने कहा, “स्लरी सिरदर्द बन गई थी। हमने सरकार से आग्रह किया कि इसका कुछ किया जाए।” इसके परिणामस्वरूप, मोरबी में टाइल निर्माण के लिए स्लरी का उपयोग शुरू हुआ, जिससे जालोर की ग्रेनाइट स्लरी की मांग बढ़ गई।
अब, जालोर से रोजाना 60 ट्रक स्लरी मोरबी भेजे जा रहे हैं, जिसमें एक ट्रक में 35 से 42 टन स्लरी होती है। चौधरी ने बताया कि इस स्लरी को न्यूनतम शुल्क पर बेचा जाता है, जिससे एसोसिएशन को आय होती है, जो मजदूरों के हितों में और ग्रेनाइट इकाइयों के विकास में लगाई जाती है।
जालोर की ग्रेनाइट उद्योग की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी, और अब यहां की स्लरी से बनी टाइलें देश और विदेश में जा रही हैं। एक ट्रक टाइल्स की कीमत 30 से 35 लाख रुपये तक है।
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