Jaipur लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने अपनी नई पुस्तक “दियासलाई” के माध्यम से अपने जीवन संघर्ष, समाज में बदलाव की जरूरत और बच्चों के अधिकारों के लिए किए गए अपने अभूतपूर्व प्रयासों पर चर्चा की। इस खास सत्र में सत्यार्थी ने अपने सफर के कई अनसुने पहलुओं को उजागर किया और बताया कि कैसे उनके संघर्षों ने उन्हें समाज के लिए एक दियासलाई की तरह जलने को प्रेरित किया।
“दियासलाई” – एक प्रकाश पुंज की तरह
कैलाश सत्यार्थी ने अपनी पुस्तक दियासलाई की तुलना एक मार्गदर्शक दीपक से की। उनका मानना है कि मोमबत्ती या अगरबत्ती को जलाने के लिए एक दियासलाई की जरूरत होती है, और उसी तरह समाज में बदलाव लाने के लिए कुछ लोगों को संघर्ष का अंग बनना पड़ता है। यह पुस्तक उनके उस अभियान की कहानी बयां करती है, जिसमें उन्होंने बच्चों के अधिकारों और उनके शोषण के खिलाफ लगातार आवाज उठाई।
संघर्ष, आलोचना और अंततः जीत
सत्यार्थी ने इस दौरान महात्मा गांधी के शब्दों को याद किया, जिसमें कहा गया है कि “पहले वे आपको अनदेखा करेंगे, फिर वे आपका विरोध करेंगे, फिर वे आप पर हमला करेंगे और अंत में आप जीतेंगे।” उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें कई बार देशद्रोही करार दिया गया और उनके प्रयासों को विदेशी साजिश करार दिया गया।
विशेष रूप से मिर्जापुर के गलीचा उद्योग में बाल श्रम के खिलाफ उनकी मुहिम को लेकर उन्हें यूरोप और पाकिस्तान का एजेंट तक कहा गया। उन्होंने बताया कि कालीन उद्योग में बच्चों का शोषण बड़े पैमाने पर होता था, और जब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई, तो कई शक्तिशाली व्यापारियों ने उनका विरोध किया।
फूलन देवी और बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई
सत्यार्थी ने फूलन देवी से जुड़े एक दिलचस्प किस्से को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे फूलन देवी ने भी शुरुआत में उन्हें अपना दुश्मन समझा, क्योंकि उनका चुनावी अभियान कालीन उद्योग से जुड़े लोगों पर केंद्रित था, जिनका सत्यार्थी विरोध कर रहे थे। लेकिन समय के साथ सत्यार्थी के काम को लेकर समाज की धारणा बदली और उनकी लड़ाई को समर्थन मिलने लगा।
सर्कस से बच्चों को बचाने की घटना
कैलाश सत्यार्थी ने एक और रोमांचक घटना साझा की, जब उन्होंने एक सर्कस से बच्चों को बचाने का प्रयास किया था। इस दौरान सर्कस के मालिक ने उन पर पिस्तौल तान दी थी। इसी बीच एक कैमरामैन सामने आ गया और विवाद बढ़ गया। हालांकि सत्यार्थी उस घटना में बच गए, लेकिन यह घटना उनकी खतरों से भरी जिंदगी का एक बड़ा उदाहरण बनी।
परिवार की चिंताएं और सत्यार्थी का समर्पण
अपने परिवार के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी शादी हो चुकी थी और परिवार को डर था कि उनका यह संघर्ष उनके जीवन को संकट में डाल सकता है। लेकिन उन्होंने यह महसूस किया कि अगर वे पीछे हट जाएंगे, तो बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाला कोई नहीं बचेगा। इसी सोच ने उन्हें अपने संघर्ष के मार्ग पर दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया।
“दियासलाई” का संदेश
कैलाश सत्यार्थी ने अंत में कहा कि अगर समाज में बच्चों के अधिकारों की रक्षा करनी है, तो हर किसी को “दियासलाई” बनना होगा। उन्होंने जागरूकता, शिक्षा और संघर्ष को बच्चों के शोषण को समाप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका बताया।
इस एक्सक्लूसिव बातचीत में सत्यार्थी ने अपनी प्रेरणादायक यात्रा को साझा किया और यह संदेश दिया कि अगर कोई व्यक्ति दृढ़ निश्चय कर ले, तो वह समाज में बदलाव ला सकता है। दियासलाई सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि बदलाव की एक लौ है, जो दूसरों को भी रोशन कर सकती है।