राजस्थान की खींवसर विधानसभा सीट उपचुनावों में सबसे चर्चित स्थान बन गई है। यहां भाजपा ने कांग्रेस के खेमे में सेंधमारी कर खुद को मजबूत करने की कोशिश की है, लेकिन असली मुकाबला तो मैदान के बाहर लड़ा जा रहा है। पश्चिमी राजस्थान की इस सीट पर हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच चल रही अदावत चुनाव की दिशा को प्रभावित कर रही है।
खींवसर का राजनीतिक इतिहास
खींवसर विधानसभा सीट की स्थापना 2008 में हुई थी, जब यह मूंडवा सीट से अलग होकर अस्तित्व में आई। इस सीट पर हनुमान बेनीवाल ने लगातार अपनी राजनीतिक ताकत साबित की है। 2008 से लेकर अब तक, हनुमान ने चार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है, और एक उपचुनाव में अपने भाई नारायण बेनीवाल को जितवाया है। उनकी राजनीतिक विरासत उनके पिता रामदेव चौधरी से मिली है, जो नाथूराम मिर्धा के करीबी माने जाते थे।
इस बार कौन मैदान में है?
खींवसर उपचुनाव में मुख्य उम्मीदवारों के रूप में आरएलपी से कनिका बेनीवाल, बीजेपी से रेवत राम डांगा और कांग्रेस से डॉ. रतन चौधरी हैं। हालांकि, असली मुकाबला हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच हो रहा है। हनुमान ने अपनी पत्नी कनिका को प्रत्याशी बनाया है, जबकि ज्योति ने रेवत राम के समर्थन में पूरी ताकत झोंकी है।
अस्तित्व की लड़ाई
हनुमान के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई है। अगर वे इस बार हारते हैं, तो आरएलपी का राजस्थान विधानसभा में प्रतिनिधित्व समाप्त हो जाएगा। दूसरी ओर, ज्योति मिर्धा इस चुनाव के माध्यम से हनुमान से अपने पुराने हिसाब चुकता करने की कोशिश कर रही हैं।
जुबानी जंग की गर्मी
हनुमान और ज्योति के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच प्रतिस्पर्धा और बढ़ गई है, जिससे चुनावी माहौल और भी गर्म हो गया है। हनुमान ने आरोप लगाया है कि ज्योति ने उनके खिलाफ राजनीति की है, जबकि ज्योति ने दावा किया है कि हनुमान उनकी सफलता को नहीं पचा पा रहे हैं।
निष्कर्ष
खींवसर उपचुनाव की यह लड़ाई न केवल नेताओं के लिए बल्कि क्षेत्र के लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह चुनाव पश्चिमी राजस्थान की राजनीति में नए समीकरण पैदा कर सकता है। ऐसे में, सभी की नजरें इस राजनीतिक संघर्ष पर टिकी हैं, जो न केवल अस्तित्व की लड़ाई है, बल्कि भविष्य की राजनीतिक दिशा भी तय कर सकती है।