रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखा ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक में निर्णय लिया है कि रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखा जाएगा। यह लगातार दसवीं बार है जब RBI ने अपनी मौद्रिक नीति में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। यह बैठक 7 से 9 अक्टूबर, 2024 तक मुंबई में हुई, जिसमें आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने उपस्थित सदस्यों के साथ मिलकर निर्णय लिया।
रेपो रेट का महत्व
रेपो रेट वह दर है जिस पर सभी व्यावसायिक बैंक केंद्रीय बैंक से उधार लेते हैं। यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसके माध्यम से RBI देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है। यदि रेपो रेट बढ़ता है, तो इससे व्यावसायिक बैंकों की लागत बढ़ जाती है, जो उन्हें ग्राहकों के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर करता है। इसका सीधा असर होम लोन, कार लोन और अन्य ऋणों की ईएमआई (EMI) पर पड़ता है।
- ईएमआई पर प्रभाव: जब रेपो रेट बढ़ता है, तो ग्राहकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाता है। इससे उनकी ईएमआई में वृद्धि होती है, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ जाता है। इसके विपरीत, यदि रेपो रेट कम होता है, तो ईएमआई में कमी आ सकती है, जो ग्राहकों को राहत देती है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
रेपो रेट का अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। अगर ग्राहक की ईएमआई कम होती है, तो उनके पास खर्च करने के लिए अधिक पैसे होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है। हालांकि, अगर ग्राहकों के हाथ में बहुत ज्यादा पैसे होते हैं, तो इससे महंगाई भी बढ़ सकती है। इसीलिए, केंद्रीय बैंक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर रेपो रेट को बढ़ाने का निर्णय लेता है।
गवर्नर शक्तिकांत दास का बयान
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैठक के बाद कहा, “मौद्रिक नीति समिति ने तीन नए बाहरी सदस्यों के साथ मिलकर मैक्रोइकोनॉमिक और वित्तीय परिस्थितियों का गहराई से विश्लेषण किया। छह में से पांच सदस्यों ने नीति रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखने का निर्णय लिया।”
भविष्य की योजना
आरबीआई हर दो महीने में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिए बैठक करता है। इस वर्ष की अगली बैठक दिसंबर में आयोजित की जाएगी। RBI की मौद्रिक नीति समिति की यह समीक्षा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे न केवल बैंकों की नीति निर्धारित होती है, बल्कि यह आम जनता के वित्तीय जीवन को भी प्रभावित करती है।
निष्कर्ष
रेपो रेट का स्थिर रहना अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह न केवल बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता को दर्शाता है, बल्कि यह आने वाले महीनों में आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रभाव डाल सकता है। ग्राहकों को इस निर्णय का प्रभाव समझना होगा और अपने वित्तीय योजनाओं को इसी के अनुसार समायोजित करना होगा।