जनतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ अजमेर शहर की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था नगर निगम यदि कमर्शियल एक्टिविटी में लिप्त होकर जनता के हको पर कुठाराघात करे तो नगर निगम की इस बिल्डिंग को कौन माई का लाल सीज करेगा? क्योंकि रेजिडेंशियल एक्टिविटी के लिए बने भवनों में अगर कमर्शियल एक्टिविटी होती है तो ऐसे भवनों को सीज करने का अधिकार केवल नगर निगम के पास है। नगर निगम के प्रवेश द्वार से लेकर सर्वोच्च आसन तक कमर्शियल एक्टिविटी धडल्ले से चल रही है। फायसागर से लेकर सुभाष उद्यान, विजयलक्ष्मी पार्क, आजाद पार्क,इंडौर स्टेडियम, पटेल ग्राउंड को ठेकों मकड़जाल में फंसा कर शहरवासियों के हितों के साथ निरंतर खिलवाड़ किया जा रहा है। पटेल मैदान में खिलाड़ियों के प्रवेश पर रोक लगने के बाद नगर निगम के पूर्व महापौर धर्मेंद्र गहलोत से भी नहीं रहा गया। उन्होंने महापौर डाक्टर ब्रजलता हाड़ा को चिट्ठी लिखकर यह स्पष्ट संकेत दिया कि पटेल मैदान को ठेके पर देना नगर पालिका अधिनियम की धारा 45 की उप धारा य का खुला उल्लंघन है। इस धारा के तहत स्पष्ट उल्लेख है कि शैक्षणिक खेल संबंधी और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करना नगर पालिका के दायित्व में शामिल है। गहलोत ने मैडम हाडा को साफ तौर पर कहा है कि इन्डोर स्टेडियम तथा आजाद पार्क की तर्ज पर पटेल मैदान को भी ठेके पर देना और खिलाड़ियों से शुल्क वसूलना गलत है क्योंकि नगर निगम वाणिज्य संस्था नहीं है जनता के हितों के लिए बनाई गई संस्था है। जिसका प्रतिनिधित्व जनता की ओर से चुने गए जनप्रतिनिधि करते हैं। उन्होंने यहां तक कहा है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण की आर्थिक सलाह के तहत इस तरह का निर्णय लिया जाना न्यायोचित नहीं है। गहलोत ने चंद्रवरदाई खेल स्टेडियम का भी जिक्र किया है जहां खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की समस्त व्यवस्थाएं सरकार की ओर से की जा रही है। इस पत्र पर नगर निगम ने विचार करने की जरूरत ही नहीं समझी और पटेल मैदान में खिलाड़ियों का प्रवेश पर ताला लगा दिया। इन ठेकों को लेकर भी भाई भतीजावाद की जो चर्चा शहर में चल रही है वह भी कम दिलचस्प नहीं है। इस तरह के महत्वपूर्ण ठेके बिना साधारण सभा की बैठक में पास किए दे दिए गए इसके पीछे का रहस्य अपने आप समझ में आता है। सुनने में तो आया है कि पटेल मैदान के ठेके के लिए ऑनलाइन केवल दो ही टेंडर आए थे। नगर पालिका अधिनियम की धारा 45 के ब भाग में सार्वजनिक उद्यानों को विकसित करने का जिम्मेदार भी नगर निगम को बताया गया है। नगर निगम के अधीन समस्त उद्यान टिकट लो तो दो अंदर जाओ, की तर्ज पर चल रहे हैं। इस तरह एक के बाद एक जजिया कर लगाया जा रहा है और हमारे पार्षद जनप्रतिनिधि अपने दायित्व पर ताला लगाकर आराम फरमा रहे हैं। याद आता है मैडम हाडा के राज में ही जन्म प्रमाण पत्र और मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ सरचार्ज जोड़ दिया गया था तब सभी ने एकजुटता दिखाई थी। उसके बाद सफाई शुल्क का मामला सामने आया, तब भी एकता के साथ विरोध किया गया था। आज जब हालात नाजुक मोड़ पर पहुंच चुके हैं और विधानसभा अध्यक्ष हमारे चार बार के विधायक वासुदेव देवनानी जी की भी नहीं सुनी जा रही है तब भी हम खामोशी से मनमानी को बर्दाश्त करते रहेंगे क्या? 28 जून को एथलीट कोच शंकर लाल जी बुनकर ने विधानसभा अध्यक्ष देवनानी जी से मुलाकात कर इस समस्या की जानकारी दी थी। तब देवनानी जी ने जिला कलेक्टर व आयुक्त नगर निगम देवलदान को फुटबॉल और एथलीट खेल को निशुल्क करने के निर्देश दिए थे। लेकिन वह निर्देश बर्फ में दफन हो गए। क्योंकि 29 जून को जब करीब 70 खिलाड़ी प्रेक्टिस करने तो पटेल मैदान पहुंचे तो वहां तले ने उनका स्वागत किया और उन्हें बिना प्रैक्टिस के ही लौटना पड़ा जबकि कुछ ने बाहर प्रैक्टिस की। जो हमारे विधानसभा अध्यक्ष की नहीं सुनते उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है? इसके अलावा एक बात और देवनानी जी ने एथलीट और फुटबॉल को निशुल्क करने के लिए निर्देश दिए थे जिनका पालन नहीं हुआ । लेकिन पटेल मैदान और इंदौर स्टेडियम में बास्केटबॉल, कुश्ती ,बॉक्सिंग, जूडो कराटे ,टेबल टेनिस, लॉन्ग टेनिस, बैडमिंटन के खेल खेले जाते हैं इन सभी को निशुल्क होना चाहिए। प्लीज देवनानी जी आपसे अनुरोध है कि सभी खेल निःशुल्क कराएं। खेलों का महाकुंभ आयोजित करने वाले नगर निगम के कर्णधारों ने नगर निगम को ऐसी कौन सी गरीबी मैं झोंक दिया है कि अब खेलों के लिए भी शुल्क देना पड़ेगा।उद्यानों के लिए भी शुल्क देना पड़ेगा और शहर की सड़कों पर शहरवासियों को वाहन चलाते समय आपस में टकराना पड़ेगा खड्डों की वजह से। नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस की हारी हुई प्रत्याशी पार्षद द्रोपदी देवी क्यों चुप है समझ में नहीं आता। कांग्रेसी पार्षद द्रौपदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा को देकर आए है। लेकिन गिरवी रख चुके शहर की धरोहर पटेल मैदान को बचाने के लिए और कलेक्टर को ज्ञापन देने की फुर्सत नहीं है उन्हें। क्यों नहीं धरना करते प्रदर्शन करते। अगले साल नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं शहर की हितों की रक्षा कौन करेगा? विजय जैन साहब के लिए तो कुछ कहना ही बेकार है जब उनका मन होता है वह वर्तमान शहर कांग्रेस अध्यक्ष हो जाते हैं जब उनका मन होता है निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष हो जाते हैं। इनसे तो बस पुण्यतिथि और जन्मदिन बनवा लो कांग्रेस नेताओं की। ताकि खबरों की कटिंग नेताओं को भेज सके। पब्लिक से क्या लेना देना? सबके हाथ मेज के नीचे मिले हुए। अपन का तो इतना ही कहना है——–
खाओ अजमेर संतान
नहीं रखो मलाई का ध्यान
तुम्हें ही खानी है सारी मलाई
चूल्हे में गई पब्लिक की भलाई