राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को हिंदू मंदिर घोषित करने की याचिका पर निचली अदालत ने सुनवाई स्वीकार कर ली है। कोर्ट ने दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), और अल्पसंख्यक मंत्रालय को पक्षकार बनाते हुए 20 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की है।
क्या है मामला?
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अदालत में याचिका दायर करते हुए दावा किया है कि दरगाह स्थल पर पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों और किताबों को आधार बनाते हुए दरगाह को मंदिर घोषित करने की मांग की है।
दरगाह दीवान का बयान
दरगाह दीवान सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि:
- “यह सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास है। इतिहास में कहीं यह प्रमाण नहीं है कि दरगाह मंदिर तोड़कर बनाई गई।”
- उन्होंने वादी द्वारा इस्तेमाल की गई ‘अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ (1910) पुस्तक का हवाला देते हुए इसे मनगढ़ंत और अविश्वसनीय आधार बताया।
दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
- यह दरगाह 850 साल पुरानी है और 1236 में गरीब नवाज के विसाल (देहांत) के बाद से स्थापित है।
- इतिहास में हिंदू और मुस्लिम राजा, दोनों ने दरगाह के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। जयपुर महाराज ने चांदी का कटहरा चढ़ाया था।
- यह दरगाह सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र रही है।
विवाद का प्रभाव
दरगाह दीवान ने चिंता जताई कि इस तरह के दावे समाज में विभाजन और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह देश के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है।
यह मामला अब कानूनी प्रक्रिया के तहत है, और सभी पक्षकार अपनी दलीलें कोर्ट में पेश करेंगे। निर्णय आने तक यह मामला धार्मिक और सामाजिक चर्चाओं का केंद्र बना रहेगा।